रोज़ा रखने की दुआ: रमज़ान की इबादत का पहला कदम

रोज़ा रखने की नीयत

وَبِصَوْمِ غَدٍ نَوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَان
तलफ़्फ़ुज़:
Wa bisawmi ghadin nawaitu min shahri Ramadhan
तर्जुमा:
मैंने कल रमज़ान के रोज़े की नीयत की।
मसदर:
फिक़्ह की किताबें
roza rakhne ki dua

Table of Content

रमज़ान का महीना अल्लाह की रहमत और इबादत का खास वक़्त है। रोज़ा रखना इस महीने की सबसे बड़ी नेमतों में से एक है। जब हम रोज़ा शुरू करते हैं, तो “रोज़ा रखने की दुआ” पढ़ना हमारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत है। यह दुआ नीयत को मज़बूत करती है और अल्लाह से हमारा ताल्लुक जोड़ती है। बहुत से लोग इस दुआ को ढूंढते हैं, इसलिए हम इसे सबसे पहले आपके सामने पेश कर रहे हैं।


रोज़ा रखने की दुआ

अरबी में दुआ:
وَبِصَوْمِ غَدٍ نَوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَان

हिंदी में लिखावट:
व बिसौमि ग़दिन नवैतु मिन शह्रि रमज़ान

हिंदी में मतलब:
“मैंने रमज़ान के महीने में कल के रोज़े की नीयत की।”

English Transliteration:
Wa bisawmi ghadin nawaitu min shahri Ramadan

English Translation:
“I intend to fast tomorrow in the month of Ramadan.”

यह दुआ छोटी और आसान है। इसे सेहरी के वक़्त पढ़ें।


रोज़ा रखने की दुआ क्यों ज़रूरी है?

रोज़ा रखने की दुआ हमारी नीयत को साफ़ करती है। इस्लाम में हर इबादत की शुरुआत नीयत से होती है, और रोज़ा भी इसके बिना पूरा नहीं होता। हमारे नबी (स.अ.व.) ने फरमाया कि “हर काम का आधार नीयत पर है” (सही बुखारी, हदीस 1)। जब हम यह दुआ पढ़ते हैं, तो अपने दिल से अल्लाह को बता देते हैं कि हम यह रोज़ा सिर्फ़ उसके लिए रख रहे हैं। यह दुआ हमें याद दिलाती है कि हमारा मकसद सिर्फ़ भूखे-प्यासे रहना नहीं, बल्कि अल्लाह की रज़ा हासिल करना है।


इस दुआ को कब और कैसे पढ़ें?

“रोज़ा रखने की दुआ” को सेहरी के वक़्त पढ़ा जाता है। जब आप सुबह उठकर सेहरी खाएँ, तो खाना खत्म करने के बाद यह दुआ पढ़ें। इसे ज़बान से बोलना ज़रूरी नहीं—दिल से नीयत करना ही काफी है। लेकिन अगर आप इसे ज़बान से पढ़ते हैं, तो यह सुन्नत को पूरा करता है। सेहरी का वक़्त फज्र की अज़ान से पहले खत्म हो जाता है, इसलिए इस दुआ को वक़्त पर पढ़ लें। इसे खामोशी में और पूरी शिद्दत के साथ पढ़ें, ताकि आपकी नीयत पक्की हो।


रोज़ा रखने की दुआ के फायदे

इस दुआ को पढ़ने से कई नेमतें मिलती हैं। आइए, कुछ खास फायदे देखें:

  • नीयत मज़बूत होती है: यह दुआ हमारे इरादे को अल्लाह की तरफ मोड़ती है।
  • सवाब बढ़ता है: सही नीयत से रोज़ा रखने का सवाब कई गुना हो जाता है।
  • रहमत नसीब होती है: रमज़ान में यह दुआ अल्लाह की खास रहमत का दरवाज़ा खोलती है।
  • दिल को सुकून: इसे पढ़ने से इबादत का एहसास बढ़ता है और दिल में राहत मिलती है।

यह दुआ रोज़े की शुरुआत को खूबसूरत बनाती है। इसे हर रोज़ सेहरी में पढ़ें।


सेहरी में ध्यान रखने वाली बातें

सेहरी करते वक़्त कुछ बातों का ख्याल रखें:

  • दुआ न भूलें: सेहरी खत्म करने के बाद “रोज़ा रखने की दुआ” ज़रूर पढ़ें।
  • वक़्त का ध्यान: फज्र की अज़ान से पहले सेहरी पूरी कर लें।
  • हल्का खाएँ: ऐसा खाना खाएँ जो दिन भर ताक़त दे, जैसे खजूर और पानी।

इन बातों से आपका रोज़ा आसान और बेहतर होगा।


अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

1. रोज़ा रखने की दुआ पढ़ना क्यों ज़रूरी है?
यह दुआ नीयत को पक्का करती है और रोज़े को अल्लाह के लिए खास बनाती है।

2. क्या रोज़ा रखने की दुआ ज़बान से पढ़ना लाज़िम है?
नहीं, दिल से नीयत करना ही काफी है। लेकिन ज़बान से पढ़ना सुन्नत को पूरा करता है।

3. क्या रोज़ा रखने और खोलने की दुआ एक जैसी है?
नहीं, रोज़ा रखने की दुआ सेहरी के लिए है, और खोलने की दुआ इफ्तार के लिए। दोनों अलग हैं।

4. रोज़ा रखने की दुआ कब पढ़ें?
सेहरी के वक़्त, खाना खाने के बाद और फज्र की अज़ान से पहले पढ़ें।

5. अगर दुआ याद न हो तो क्या करें?
दिल से अल्लाह के लिए रोज़े की नीयत करें। यह दुआ छोटी है, इसे याद करने की कोशिश करें।


आखिरी बात

“रोज़ा रखने की दुआ” रमज़ान के हर रोज़े की शुरुआत है। यह हमें अल्लाह के करीब लाती है और हमारी इबादत को मकसद देती है। इसे हर सेहरी में पढ़ें और अपने रोज़े को बरकत से भर दें। रमज़ान का हर लम्हा कीमती है, इसे इबादत से सजाएँ। और दुआओं के लिए Dua India पर जाएँ। अल्लाह हम सबके रोज़े कबूल करे, आमीन!