रिज़्क़ यानी रोज़ी हर इंसान की ज़रूरत है, और यह अल्लाह की बड़ी नेमत है। भारत में लोग “दुआ ए रिज़्क़” (Dua e Rizq) को खूब ढूंढते हैं, ताकि उनकी रोज़ी में बरकत हो, तंगी दूर हो, और ज़िंदगी आसान बने। हमारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने रिज़्क़ बढ़ाने के लिए कई दुआएँ सिखाईं, और कुरआन में भी इसके लिए खास आयतें हैं। यहाँ हम आपको तीन सही और मशहूर दुआएँ पेश करेंगे, जो हदीस और कुरआन से ली गई हैं। हम बताएँगे कि ये कहाँ से आईं, इनका मतलब क्या है, और इन्हें कैसे पढ़ें।
📜 दुआ ए रिज़्क़ (सही और आसान)
रिज़्क़ के लिए कई दुआएँ हैं, मगर यहाँ हम तीन सबसे भरोसेमंद दुआएँ दे रहे हैं, जो हदीस और कुरआन से साबित हैं। ये हलाल रोज़ी और बरकत माँगती हैं।
1. पहली दुआ: हलाल रिज़्क़ के लिए
📜 अरबी में दुआ:
اللَّهُمَّ اكْفِنِي بِحَلَالِكَ عَنْ حَرَامِكَ وَأَغْنِنِي بِفَضْلِكَ عَمَّنْ سِوَاكَ
📜 हिंदी में लिखावट:
अल्लाहुम्मा इकफिनी बिहलालिक अन हरामिक व अगनिनी बिफज़्लिक अम्मन सिवाक
📜 हिंदी में मतलब:
“ऐ अल्लाह! मुझे अपने हलाल रिज़्क़ से काफी कर दे ताकि मैं हराम से बचूँ, और अपने फज़्ल से मुझे दूसरों से बेनियाज़ कर दे।”
📜 English Transliteration:
Allahumma ikfini bihalalika ‘an haramika wa aghnini bifadlika ‘amman siwaka
📜 English Translation:
“O Allah! Suffice me with Your lawful provision against Your unlawful, and make me independent of anyone besides You through Your grace.”
माखज़ (Source):
- सुनन तिर्मिज़ी (हदीस 3563) में हज़रत अली (र.अ.) से रिवायत है। नबी (स.अ.व.) ने इसे सिखाया।
- अल्लामा अल्बानी ने इसे हसन (अच्छा) कहा है (सही सुनन तिर्मिज़ी, हदीस 2886)।
2. दूसरी दुआ: नेमत और बरकत के लिए
📜 अरबी में दुआ:
رَبِّ اغْفِرْ لِي وَهَبْ لِي مُلْكًا لا يَنْبَغِي لِأَحَدٍ مِنْ بَعْدِي إِنَّكَ أَنْتَ الْوَهَّابُ
📜 हिंदी में लिखावट:
रब्बिगफिर ली व हब ली मुल्कन ला यंबगी लिअहदिम मिन बअदी इन्नका अंतल वह्हाब
📜 हिंदी में मतलब:
“ऐ मेरे रब! मुझे माफ़ कर और मुझे ऐसी बादशाही दे जो मुझसे बाद किसी के लिए न हो, बेशक तू बहुत देने वाला है।” (रिज़्क़ के लिए इसे खास नेमत के तौर पर माँगा जाता है।)
📜 English Transliteration:
Rabbighfir li wa hab li mulkan la yanbaghi li-ahadin min ba‘di innaka antal wahhab
📜 English Translation:
“My Lord! Forgive me and grant me a kingdom such as will not befit anyone after me; indeed, You are the Bestower.”
माखज़ (Source):
- सूरह साद (38:35) में हज़रत सुलेमान (अ.स.) की दुआ है। उलमा इसे रिज़्क़ और नेमत के लिए पढ़ने की सलाह देते हैं।
3. तीसरी दुआ: रोज़ी की तंगी दूर करने के लिए
📜 अरबी में दुआ:
اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي ذَنْبِي وَوَسِّعْ لِي فِي رِزْقِي وَبَارِكْ لِي فِيمَا رَزَقْتَنِي
📜 हिंदी में लिखावट:
अल्लाहुम्मा इगफिर ली ज़ंबी व वस्सिअ ली फी रिज़्क़ी व बारिक ली फीमा रज़क़तनी
📜 हिंदी में मतलब:
“ऐ अल्लाह! मेरे गुनाह माफ़ कर, मेरे रिज़्क़ में वुसअत (फराखी) दे, और जो तूने मुझे दिया उसमें बरकत दे।”
📜 English Transliteration:
Allahumma ighfir li dhanbi wa wassi‘ li fi rizqi wa barik li fima raziqtani
📜 English Translation:
“O Allah! Forgive my sins, expand my sustenance for me, and bless me in what You have provided me.”
माखज़ (Source):
- सुनन तिर्मिज़ी (हदीस 3500) और सुनन इब्ने माजा (हदीस 925) में हज़रत अबू हुरैरह (र.अ.) से रिवायत है। यह दुआ नबी (स.अ.व.) से मंसूब है।
- अल्लामा अल्बानी ने इसे हसन (अच्छा) कहा है।
दुआ ए रिज़्क़ की अहमियत
रिज़्क़ सिर्फ़ पैसा नहीं, बल्कि खाना, सेहत, और सुकून भी है—यह सब अल्लाह की देन है। सही बुखारी (हदीस 6389) में नबी (स.अ.व.) ने फरमाया: “रिज़्क़ की तलाश करो, क्योंकि इसमें बरकत है।” “दुआ ए रिज़्क़” अल्लाह से हलाल रोज़ी माँगने और हराम से बचने का ज़रिया है। सूरह हूद (11:6) में अल्लाह फरमाता है: “ज़मीन पर कोई जंगली जानवर ऐसा नहीं जिसका रिज़्क़ अल्लाह के ज़िम्मे न हो।” यह दुआ उस भरोसे को मज़बूत करती है। भारत में लोग नौकरी, कारोबार, या घर की ज़रूरतों के लिए इसे पढ़ते हैं।
दुआ ए रिज़्क़ कब और कैसे पढ़ें?
रिज़्क़ की दुआ हर वक़्त माँगी जा सकती है, मगर कुछ खास वक़्त और तरीके इसे ज़्यादा असरदार बनाते हैं:
- नमाज़ के बाद: फर्ज़ नमाज़ के बाद “अल्लाहुम्मा इकफिनी…” या “अल्लाहुम्मा इगफिर ली…” पढ़ें।
- तहज्जुद में: रात के आखिरी पहर में “रब्बिगफिर ली…” माँगें।
- सजदे में: नमाज़ में सजदे के दौरान ये दुआएँ पढ़ें।
- इस्तिगफ़ार के साथ: “अस्तगफिरुल्लाह” को 100 बार पढ़ें, क्योंकि सुनन इब्ने माजा (हदीस 3819) में है कि इस्तिगफ़ार रिज़्क़ बढ़ाता है।
- यकीन से: दिल से और भरोसे के साथ माँगें।
कब पढ़ें:
- सुबह-शाम, जुम्मे के दिन, या तंगी के वक़्त। हनफी मज़हब में तहज्जुद और इस्तिगफ़ार को रिज़्क़ के लिए खास माना जाता है।
दुआ ए रिज़्क़ के फायदे
- हलाल रोज़ी: पहली दुआ हराम से बचाती है।
- बरकत: तीसरी दुआ दी हुई चीज़ों में बरकत लाती है।
- फराखी: दूसरी और तीसरी दुआ रिज़्क़ में वुसअत देती हैं।
- सुकून: अल्लाह पर तवक्कुल बढ़ता है।
सूरह अत-तलाक़ (65:3) में अल्लाह फरमाता है: “जो अल्लाह पर भरोसा करे, उसके लिए वह काफी है।” ये दुआएँ उस भरोसे का रास्ता हैं।
📌 अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
1. दुआ ए रिज़्क़ कितनी बार पढ़ें?
कोई तय संख्या नहीं, मगर रोज़ सुबह-शाम पढ़ना अच्छा है।
2. क्या सिर्फ़ दुआ से रिज़्क़ बढ़ेगा?
दुआ के साथ मेहनत भी करनी चाहिए। अल्लाह मेहनत और दुआ दोनों को कबूल करता है।
3. अगर दुआ याद न हो तो क्या करें?
“अल्लाहुम्मा इरज़ुक़्नी” (ऐ अल्लाह! मुझे रिज़्क़ दे) कहें या अपनी ज़बान में माँगें।
4. क्या औरतें भी पढ़ सकती हैं?
हाँ, ये दुआएँ हर मुसलमान के लिए हैं।
आखिरी बात
“दुआ ए रिज़्क़” अल्लाह से हलाल रोज़ी, बरकत, और फराखी माँगने की सुन्नत दुआएँ हैं। “अल्लाहुम्मा इकफिनी…” हलाल माँगती है, “रब्बिगफिर ली…” खास नेमत के लिए है, और “अल्लाहुम्मा इगफिर ली…” तंगी दूर करती है। इन्हें नमाज़, तहज्जुद, और इस्तिगफ़ार के साथ पढ़ें। भारत में लोग इन्हें रोज़ी की बेहतरी के लिए खूब पढ़ते हैं। मेहनत के साथ दुआ माँगें और अल्लाह पर भरोसा रखें। और दुआओं के लिए Dua India पर जाएँ। अल्लाह हमें हलाल रिज़्क़ और बरकत दे, आमीन!