ग़ुस्ल की दुआ: सुन्नत से पाकीज़गी हासिल करें

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इस्लाम में पाकीज़गी को बहुत अहमियत दी गई है। ग़ुस्ल यानी पूरा नहाना, कई मौकों पर ज़रूरी होता है, जैसे जनाबत (नापاکی) के बाद, जुमे की नमाज़ से पहले, या ईद के लिए। “ग़ुस्ल की दुआ” इसे सुन्नत तरीके से करने का ज़रिया है। यह दुआ हमारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तालीम से ली गई है। बहुत से लोग इसे ढूंढते हैं, इसलिए हम इसे सबसे पहले पेश कर रहे हैं। हम आपको बताएँगे कि ये दुआएँ कहाँ से आईं, इनका मतलब क्या है, और ग़ुस्ल कैसे करें।


ग़ुस्ल की दुआ (सही और मुकम्मल)

ग़ुस्ल शुरू करने से पहले और बाद में दुआ पढ़ना सुन्नत है। हनफी मज़हब में नीयत के साथ खास दुआएँ पढ़ी जाती हैं। यहाँ दो मशहूर दुआएँ हैं:

1. ग़ुस्ल शुरू करने की दुआ (नीयत)

अरबी में दुआ:
نَوَيْتُ أَنْ أَغْتَسِلَ مِنْ غُسْلِ لِرَفْعِ الْحَدَثِ

हिंदी में लिखावट:
नवैतु अन अग्तासिल मिन ग़ुस्लि लिरफ़ाइल हदसि

हिंदी में मतलब:
“मैंने नीयत की कि मैं ग़ुस्ल करूँ ताकि नापاکی (हदस) दूर हो।”

English Transliteration:
Nawaitu an aghtasila min ghusli liraf‘il hadasi

English Translation:
“I intend to perform Ghusl to remove impurity (hadas).”

माखज़ (Source):

  • यह खास दुआ हदीस में साफ़ तौर पर नहीं मिलती, लेकिन हनफी मज़हब में नीयत को ज़बान से कहना मुस्तहब (पसंदीदा) माना जाता है। “अस-सुनन अल-कुब्रा लिल-बैहकी” (जिल्द 1, पेज 147) में ग़ुस्ल की नीयत का ज़िक्र है।
  • हर काम की शुरुआत में “बिस्मिल्लाह” कहना सही बुखारी (हदीस 6324) से साबित है, जो इसके साथ पढ़ा जाता है।

2. ग़ुस्ल के बाद की दुआ

अरबी में दुआ:
أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ

हिंदी में लिखावट:
अशहदु अन ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीक लहु, व अशहदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु

हिंदी में मतलब:
“मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं। और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (स.अ.व.) उसके बंदे और रसूल हैं।”

English Transliteration:
Ashhadu an la ilaha illallahu wahdahu la sharika lahu, wa ashhadu anna Muhammadan ‘abduhu wa rasuluhu

English Translation:
“I bear witness that there is no god but Allah, alone without any partner, and I bear witness that Muhammad is His servant and Messenger.”

माखज़ (Source):

  • यह दुआ सही मुस्लिम (हदीस 234) में हज़रत उमर (र.अ.) से रिवायत है। नबी (स.अ.व.) ने फरमाया कि ग़ुस्ल के बाद इसे पढ़ने से गुनाह माफ़ हो जाते हैं।

ग़ुस्ल की दुआ की अहमियत

ग़ुस्ल सिर्फ़ जिस्म की सफाई नहीं, बल्कि रूह की पाकीज़गी भी है। “ग़ुस्ल की दुआ” इसे इबादत बनाती है। सही बुखारी (हदीस 248) में है कि नबी (स.अ.व.) ने जुमे के लिए ग़ुस्ल को सुन्नत बताया। नीयत की दुआ (“नवैतु…”) से ग़ुस्ल का मकसद साफ़ होता है, और बाद की दुआ (“अशहदु…”) से गुनाहों की माफी मिलती है। सूरह अल-माइदा (5:6) में अल्लाह फरमाता है: “जब तुम ग़ुस्ल करो, तो अच्छी तरह करो।” यह दुआएँ उस अच्छाई को पूरा करती हैं। हनफी मज़हब में नीयत को ज़बान से कहना पसंद किया जाता है, जो इसे और खास बनाता है।


ग़ुस्ल की दुआ कब और कैसे पढ़ें?

ग़ुस्ल करने का सही तरीका सुन्नत से लिया गया है। हनफी मज़हब में इसे दुआ के साथ करने के लिए ये करें:

ग़ुस्ल का तरीका:

  1. नीयत करें: दिल में ग़ुस्ल की नीयत करें और “नवैतु अन अग्तासिल मिन ग़ुस्लि लिरफ़ाइल हदसि” पढ़ें। इसके साथ “बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम” भी कहें।
  2. हाथ धोएँ: दोनों हाथ तीन बार धोएँ।
  3. शर्मगाह साफ़ करें: अगर गंदगी हो, तो उसे साफ़ करें।
  4. वुज़ू करें: पूरा वुज़ू करें, जैसे नमाज़ के लिए करते हैं।
  5. पूरा नहाएँ: पहले सर पर पानी डालें, फिर दाएँ कंधे पर, फिर बाएँ कंधे पर। पूरे जिस्म को तीन बार पानी से धोएँ।
  6. दुआ पढ़ें: ग़ुस्ल के बाद “अशहदु अन ला इलाहा…” पढ़ें।

माखज़:

  • सुनन अबी दाऊद (हदीस 401) में हज़रत आयशा (र.अ.) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) इसी तरह ग़ुस्ल करते थे।
  • सही मुस्लिम (हदीस 234) में बाद की दुआ का ज़िक्र है।
  • हनफी किताबों जैसे “हिदाया” में नीयत को ज़बान से कहने की बात है।

कब करें:

  • जनाबत (नापاکی) के बाद, जुमे की नमाज़ से पहले, ईद की नमाज़ से पहले, या हज व उमरे के लिए।

ग़ुस्ल की दुआ के फायदे

  • पाकीज़गी: जिस्म और रूह साफ़ होती है।
  • सवाब: सुन्नत पर चलने से सवाब मिलता है।
  • माफी: ग़ुस्ल के बाद की दुआ से गुनाह माफ़ होते हैं।
  • हिदायत: नीयत से काम सही राह पर रहता है।

सूरह अल-बक़रह (2:222) में अल्लाह फरमाता है: “अल्लाह पाकीज़गी पसंद करता है।” यह दुआएँ उस पसंद को पूरा करती हैं।


अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

1. ग़ुस्ल की दुआ पढ़ना ज़रूरी है?
नहीं, यह सुन्नत है। नीयत दिल से ही काफी है, मगर ज़बान से कहना बेहतर है।

2. क्या बिना दुआ के ग़ुस्ल सही है?
हाँ, अगर ग़ुस्ल के फर्ज़ (नाक, मुँह, पूरा जिस्म धोना) पूरे हों, तो सही है।

3. अगर दुआ याद न हो तो क्या करें?
“बिस्मिल्लाह” कहकर ग़ुस्ल शुरू करें और अपनी ज़बान में पाकी माँगें।

4. ग़ुस्ल कब-कब करना चाहिए?
जनाबत, जुमे, ईद, या हज-उमरे के लिए जब ज़रूरी हो।


आखिरी बात

“ग़ुस्ल की दुआ” अल्लाह के नाम से पाकीज़गी हासिल करने की सुन्नत है। “नवैतु…” से नीयत करें और “अशहदु…” से ग़ुस्ल खत्म करें। यह न सिर्फ़ जिस्म को साफ़ करती है, बल्कि गुनाहों की माफी और अल्लाह की रहमत भी दिलाती है। हर ग़ुस्ल में इसे पढ़ें और सुन्नत पर चलें। और दुआओं के लिए Dua India पर जाएँ। अल्लाह हमें हर तरह की पाकीज़गी दे, आमीन!