ज़िंदगी में कई बार हमें बड़े फैसले लेने पड़ते हैं, जैसे शादी, नौकरी, या कोई और अहम काम। ऐसे मौकों पर “इस्तिखारा की दुआ” पढ़ना हमारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत है। यह दुआ अल्लाह से हिदायत और बेहतरी माँगने का खास तरीका है। बहुत से लोग इसे ढूंढते हैं, इसलिए हम इसे सबसे पहले पेश कर रहे हैं। हम आपको यह भी बताएँगे कि यह दुआ कहाँ से आई, इसका मतलब क्या है, और इसे सही तरीके से कैसे पढ़ें।
इस्तिखारा की दुआ (सही और मुकम्मल)
“इस्तिखारा की दुआ” दो रकअत नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है। यह दुआ हज़रत जाबिर (र.अ.) से रिवायत है, जिसे नबी (स.अ.व.) ने सिखाया।
अरबी में दुआ:
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَخِيرُكَ بِعِلْمِكَ وَأَسْتَقْدِرُكَ بِقُدْرَتِكَ، وَأَسْأَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ الْعَظِيمِ، فَإِنَّكَ تَقْدِرُ وَلاَ أَقْدِرُ وَتَعْلَمُ وَلاَ أَعْلَمُ وَأَنْتَ عَلاَّمُ الْغُيُوبِ، اللَّهُمَّ إِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الأَمْرَ خَيْرٌ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي فَاقْدُرْهُ لِي وَيَسِّرْهُ لِي ثُمَّ بَارِكْ لِي فِيهِ، وَإِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الأَمْرَ شَرٌّ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي فَاصْرِفْهُ عَنِّي وَاصْرِفْنِي عَنْهُ، وَاقْدُرْ لِي الْخَيْرَ حَيْثُ كَانَ ثُمَّ أَرْضِنِي بِهِ
हिंदी में लिखावट:
अल्लाहुम्मा इन्नी अस्तखीरुका बिइल्मिक, व अस्तक़्दिरुका बिकुदरतिक, व असअलुका मिन फज़्लिक अल अज़ीम, फ इन्नका तक़्दिरु वला अक़्दिरु, व तअलमु वला आलमु, व अन्त अल्लामुल ग़ुयूब, अल्लाहुम्मा इन कुन्त तअलमु अन्न हाज़ल अम्रा खैरुन ली फी दीनी व मआशी व आकिबति अम्री, फक़्दुरहु ली व यस्सिरहु ली सुम्म बारिक ली फीहि, व इन कुन्त तअलमु अन्न हाज़ल अम्रा शर्रुन ली फी दीनी व मआशी व आकिबति अम्री, फस्सरिफहु अन्नी वस्सरिफनी अन्हु, वक़्दुर लिल खैरा हैसु काना सुम्म अरज़िनी बिही
हिंदी में मतलब:
“ऐ अल्लाह! मैं तेरे इल्म से हिदायत माँगता हूँ, तेरी कुदरत से ताक़त माँगता हूँ, और तेरे बड़े फज़्ल से सवाल करता हूँ। बेशक तू कुदरत रखता है, मैं नहीं रखता। तू जानता है, मैं नहीं जानता। तू ग़ैब (छुपी बातों) को जानने वाला है। ऐ अल्लाह! अगर तू जानता है कि यह काम (अम्र) मेरे दीन, मेरी रोज़ी, और मेरे काम के अंजाम के लिए बेहतर है, तो इसे मेरे लिए मुक़र्रर कर दे, मेरे लिए आसान कर दे, और इसमें मेरे लिए बरकत दे दे। और अगर तू जानता है कि यह काम मेरे दीन, मेरी रोज़ी, और मेरे काम के अंजाम के लिए बुरा है, तो इसे मुझ से दूर कर दे और मुझे इससे दूर कर दे। मेरे लिए खैर मुक़र्रर कर, जहाँ भी हो, फिर मुझे उससे राज़ी कर दे।”
English Transliteration:
Allahumma inni astakhiruka bi‘ilmika wa astaqdiruka biqudratika wa as’aluka min fadlikal ‘azim, fa innaka taqdiru wala aqdiru, wa ta‘lamu wala a‘lamu, wa anta ‘allamul ghuyub, Allahumma in kunta ta‘lamu anna hadhal amra khayrun li fi dini wa ma‘ashi wa ‘aqibati amri, faqdurhu li wa yassirhu li thumma barik li fihi, wa in kunta ta‘lamu anna hadhal amra sharrun li fi dini wa ma‘ashi wa ‘aqibati amri, fasrifhu ‘anni wasrifni ‘anhu, waqdur li al-khayra haythu kana thumma ardini bihi
English Translation:
“O Allah! I seek guidance from Your knowledge, strength from Your power, and I ask You from Your immense favor. For You have power and I have none, You know and I know not, and You are the Knower of the unseen. O Allah! If You know that this matter is good for me in my religion, my livelihood, and the outcome of my affairs, then decree it for me, make it easy for me, and bless me in it. And if You know that this matter is bad for me in my religion, my livelihood, and the outcome of my affairs, then turn it away from me and turn me away from it, and decree for me good wherever it may be, then make me pleased with it.”
माखज़ (Source):
- यह दुआ सही बुखारी (हदीस 1166) में हज़रत जाबिर (र.अ.) से रिवायत है। नबी (स.अ.व.) ने सहाबा को सिखाया कि हर अहम फैसले के लिए इस्तिखारा करें।
- सुनन तिर्मिज़ी (हदीस 480) और सुनन अबी दाऊद (हदीस 1538) में भी इसका ज़िक्र है।
इस्तिखारा की दुआ की अहमियत
“इस्तिखारा की दुआ” अल्लाह से हिदायत माँगने का सुन्नत तरीका है। सही बुखारी (हदीस 1166) में हज़रत जाबिर (र.अ.) फरमाते हैं कि नबी (स.अ.व.) हमें हर काम में इस्तिखारा सिखाते थे, जैसे कुरआन की सूरतें सिखाते हैं। यह दुआ हमें याद दिलाती है कि अल्लाह सब कुछ जानता है, और हमें उसकी मदद चाहिए। चाहे शादी का फैसला हो, नौकरी हो, या कोई और बात, यह दुआ हमें सही रास्ता दिखाती है। सूरह अल-बक़रह (2:186) में अल्लाह फरमाता है: “जब मेरे बंदे मुझ से मेरे बारे में पूछें, तो मैं करीब हूँ, दुआ करने वाले की दुआ कबूल करता हूँ।” इस्तिखारा उस करीब होने का सबूत है।
इस्तिखारा की दुआ कब और कैसे पढ़ें?
इस्तिखारा दो रकअत नमाज़ और दुआ का मिला हुआ नाम है। इसे सही तरीके से करने के लिए ये करें:
- दो रकअत नमाज़: पहले दो रकअत नफ्ल नमाज़ पढ़ें। पहली रकअत में सूरह फातिहा के बाद सूरह काफिरून (सूरह 109) और दूसरी में सूरह इखलास (सूरह 112) पढ़ें।
- दुआ पढ़ें: नमाज़ के बाद सलाम फेरें, फिर “इस्तिखारा की दुआ” पढ़ें। दुआ में अपने काम (अम्र) का नाम लें, जैसे “शादी” या “नौकरी”।
- शिद्दत से: इसे दिल से और खामोशी में पढ़ें।
- नींद लें: दुआ के बाद सो जाएँ और अल्लाह से हिदायत की उम्मीद रखें।
माखज़: सही बुखारी (हदीस 1166) में नबी (स.अ.व.) ने दो रकअत और दुआ का तरीका बताया। हनफी मज़हब में इसे इसी तरह पढ़ा जाता है।
कब करें:
- इसे रात में, खासकर तहज्जुद के वक़्त पढ़ना बेहतर है, मगर किसी भी वक़्त जायज़ है।
इस्तिखारा की दुआ के फायदे
- हिदायत: अल्लाह सही रास्ता दिखाता है।
- सुकून: फैसले का बोझ हल्का होता है।
- खैर: यह दुआ हर काम में खैर माँगती है।
- सवाब: सुन्नत पर चलने से सवाब मिलता है।
सूरह आले इमरान (3:159) में है: “अल्लाह पर भरोसा करो, वह भरोसा करने वालों को पसंद करता है।” इस्तिखारा उस भरोसे का ज़रिया है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
1. इस्तिखारा की दुआ कितनी बार पढ़ें?
एक बार काफी है, मगर कुछ उलमा सात दिन तक करने की सलाह देते हैं अगर फैसला साफ़ न हो।
2. क्या सपने देखना ज़रूरी है?
नहीं, सपना आना शर्त नहीं। हिदायत दिल के सुकून या हालात से भी मिल सकती है।
3. अगर दुआ याद न हो तो क्या करें?
अपनी ज़बान में अल्लाह से हिदायत माँगें और दो रकअत नमाज़ पढ़ें।
4. क्या इसे किसी और के लिए पढ़ सकते हैं?
हाँ, दूसरों के लिए भी नीयत करके पढ़ सकते हैं।
आखिरी बात
“इस्तिखारा की दुआ” अल्लाह से हिदायत और खैर माँगने की सुन्नत दुआ है। यह हमें फैसले में आसानी और दिल को सुकून देती है। जब भी कोई अहम काम हो, दो रकअत नमाज़ पढ़ें और यह दुआ माँगें। अल्लाह पर भरोसा रखें, वह सही रास्ता ज़रूर दिखाएगा। और दुआओं के लिए duaindia.com पर जाएँ। अल्लाह हमें हर फैसले में हिदायत दे, आमीन!