जुम्मा यानी शुक्रवार मुसलमानों के लिए हफ्ते का सबसे मुबारक दिन है। भारत में लोग “जुम्मा मुबारक दुआ” (Jumma Mubarak Dua) को खास तौर पर ढूंढते हैं, ताकि इस दिन अल्लाह से रहमत, माफी, और बरकत माँग सकें। हमारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जुम्मे की फज़ीलत बताई और दुआ करने की ताकीद की। यहाँ हम आपको दो सही दुआएँ पेश करेंगे—एक हदीस से साबित लंबी दुआ और एक छोटी मगर असरदार दुआ। हम बताएँगे कि ये कहाँ से आईं, इनका मतलब क्या है, और इन्हें कैसे पढ़ें।
📜 जुम्मा मुबारक दुआ (सही और आसान)
जुम्मे के दिन कोई खास दुआ “जुम्मा मुबारक दुआ” के नाम से हदीस में नहीं मिलती, लेकिन नबी (स.अ.व.) ने इस दिन दुरूद शरीफ़ और माफी माँगने की सलाह दी। यहाँ दो दुआएँ हैं जो जुम्मे के लिए बेहतरीन हैं।
1. लंबी दुआ: दुरूद-ए-इब्राहीम
📜 अरबी में दुआ:
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ، اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
📜 हिंदी में लिखावट:
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लयता अला इब्राहीमा व अला आलि इब्राहीमा इन्नका हमीदुन मजीद, अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारकता अला इब्राहीमा व अला आलि इब्राहीमा इन्नका हमीदुन मजीद
📜 हिंदी में मतलब:
“ऐ अल्लाह! मुहम्मद (स.अ.व.) और उनकी आल (परिवार) पर रहमत नाज़िल कर, जैसे तूने इब्राहीम (अ.स.) और उनकी आल पर रहमत नाज़िल की, बेशक तू तारीफ़ और इज़्ज़त वाला है। ऐ अल्लाह! मुहम्मद (स.अ.व.) और उनकी आल पर बरकत दे, जैसे तूने इब्राहीम (अ.स.) और उनकी आल को बरकत दी, बेशक तू तारीफ़ और इज़्ज़त वाला है।”
📜 English Transliteration:
Allahumma salli ‘ala Muhammadin wa ‘ala aali Muhammadin kama sallayta ‘ala Ibrahima wa ‘ala aali Ibrahima innaka hamidun majid, Allahumma barik ‘ala Muhammadin wa ‘ala aali Muhammadin kama barakta ‘ala Ibrahima wa ‘ala aali Ibrahima innaka hamidun majid
📜 English Translation:
“O Allah! Send blessings upon Muhammad and the family of Muhammad, as You sent blessings upon Ibrahim and the family of Ibrahim; indeed, You are Praiseworthy, Glorious. O Allah! Bless Muhammad and the family of Muhammad, as You blessed Ibrahim and the family of Ibrahim; indeed, You are Praiseworthy, Glorious.”
माखज़ (Source):
- सुनन अबी दाऊद (हदीस 1531) में हज़रत औस बिन औस (र.अ.) से रिवायत है कि नबी (स.अ.व.) ने फरमाया: “जुम्मा तुम्हारे सबसे अच्छे दिनों में से है, इस दिन मुझ पर खूब दुरूद भेजो, क्योंकि तुम्हारा दुरूद मुझ तक पहुँचाया जाता है।” यह हदीस सही है।
- यह दुरूद हर नमाज़ में तशह्हुद में पढ़ा जाता है, मगर जुम्मे को इसकी खास ताकीद है।
2. छोटी दुआ: जुम्मे की बरकत के लिए
📜 अरबी में दुआ:
اللَّهُمَّ اجْعَلْ هَذَا الْيَوْمَ مُبَارَكًا وَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَارْحَمْنَا يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ
📜 हिंदी में लिखावट:
अल्लाहुम्मा ज्अल हाज़ा अल-यौम मुबारकन वग़फिर लना ज़ुनूबना वरहमना या अरहमर्राहिमीन
📜 हिंदी में मतलब:
“ऐ अल्लाह! इस दिन को मुबारक बना, हमारे गुनाह माफ़ कर, और हम पर रहम कर, ऐ सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।”
📜 English Transliteration:
Allahumma aj‘al hadha al-yawm mubarakan waghfir lana dhunoobana warhamna ya arham ar-rahimeen
📜 English Translation:
“O Allah! Make this day blessed, forgive us our sins, and have mercy on us, O Most Merciful of the merciful.”
माखज़ (Source):
- यह दुआ किसी खास हदीस या कुरआन से सीधे नहीं मिलती, लेकिन यह जुम्मे की फज़ीलत और दुआ की कबूलियत पर आधारित है। सही बुखारी (हदीस 935) में नबी (स.अ.व.) ने जुम्मे के दिन दुआ की खासियत बताई। यह छोटी दुआ उसी से प्रेरित है और उलमा इसे जायज़ मानते हैं।
- हनफी मज़हब में अपनी ज़बान या छोटी दुआएँ माँगना मुनासिब है, खासकर जब मकसद जुम्मे की बरकत हासिल करना हो।
जुम्मा मुबारक दुआ की अहमियत
जुम्मा हफ्ते का सबसे मुबारक दिन है। सही बुखारी (हदीस 935) में नबी (स.अ.व.) ने फरमाया: “जुम्मे के दिन एक ऐसा लम्हा है कि अगर कोई मुसलमान उस वक़्त अल्लाह से कुछ माँगे, तो अल्लाह उसकी मुराद पूरी करता है।” कुरआन में सूरह अल-जुमुआ (62:9) में अल्लाह फरमाता है: “ऐ ईमान वालो! जब जुम्मे के दिन नमाज़ की अज़ान हो, तो अल्लाह की याद की तरफ जल्दी जाओ।” “जुम्मा मुबारक दुआ” इस दिन की बरकत को बढ़ाती है। दुरूद-ए-इब्राहीम नबी (स.अ.व.) पर प्यार और अल्लाह की रहमत का ज़रिया है, जबकि छोटी दुआ जुम्मे की खासियत को माँगती है। भारत में लोग जुम्मे को गुस्ल, नई पोशाक, और मस्जिद में दुआ के साथ मनाते हैं।
जुम्मा मुबारक दुआ कब और कैसे पढ़ें?
जुम्मे का दिन सुबह से मगरिब तक रहता है। इन दुआओं को पढ़ने का सही तरीका यहाँ है:
- गुस्ल करें: नबी (स.अ.व.) ने फरमाया: “जो जुम्मे के लिए गुस्ल करे, वह बेहतर है।” (सही बुखारी, हदीस 877)
- जुम्मे की नमाज़: मस्जिद में जाकर दो रकअत फर्ज़ नमाज़ पढ़ें।
- दुरूद पढ़ें: “अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन…” को जितना हो सके पढ़ें, खासकर खुतबे के बाद।
- छोटी दुआ: “अल्लाहुम्मा ज्अल हाज़ा अल-यौम…” को नमाज़ से पहले या बाद में माँगें।
- सूरह अल-कहफ: जुम्मे के दिन सूरह अल-कहफ (सूरह 18) पढ़ें, जैसा कि मिश्कात अल-मसाबीह (हदीस 2175) में है।
कब पढ़ें:
- जुम्मे की नमाज़ से पहले, बाद में, या दिन में किसी भी वक़्त। हनफी मज़हब में खुतबे और नमाज़ के बीच का वक़्त खास माना जाता है (सुनन अबी दाऊद, हदीस 1049)।
जुम्मा मुबारक दुआ के फायदे
- माफी: दुरूद और छोटी दुआ से गुनाह माफ़ होते हैं।
- रहमत: नबी (स.अ.व.) तक दुरूद पहुँचता है और अल्लाह की रहमत नाज़िल होती है।
- बरकत: जुम्मे को मुबारक बनाती है।
- सुकून: अल्लाह की याद से दिल को राहत मिलती है।
सूरह अल-जुमुआ (62:10) में अल्लाह फरमाता है: “जब नमाज़ पूरी हो, तो अल्लाह का फज़ल तलाश करो।” ये दुआएँ उस फज़ल का रास्ता हैं।
📌 अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
1. जुम्मा मुबारक दुआ क्या सिर्फ़ जुम्मे के लिए है?
दुरूद हर वक़्त पढ़ सकते हैं, मगर जुम्मे को खास अहमियत है। छोटी दुआ भी किसी दिन माँगी जा सकती है।
2. क्या अपनी ज़बान में दुआ माँग सकते हैं?
हाँ, हनफी मज़हब में अपनी ज़बान में माँगना जायज़ है।
3. अगर दुआ याद न हो तो क्या करें?
“अल्लाहुम्मा इगफिरली” (ऐ अल्लाह! मुझे माफ़ कर) पढ़ें।
4. जुम्मे का खास लम्हा कब है?
हदीस के मुताबिक, यह दिन में होता है, और हनफी उलमा इसे नमाज़ के आसपास मानते हैं।
आखिरी बात
“जुम्मा मुबारक दुआ” के लिए दुरूद-ए-इब्राहीम हदीस से साबित और सबसे अफ़ज़ल है, जबकि “अल्लाहुम्मा ज्अल हाज़ा अल-यौम…” जुम्मे की बरकत के लिए छोटी मगर असरदार दुआ है। दोनों को गुस्ल के बाद, नमाज़ से पहले और बाद में पढ़ें। भारत में जुम्मा खास दिन है, और ये दुआएँ इसकी बरकत को पूरा करती हैं। और दुआओं के लिए duaindia.com पर जाएँ। अल्लाह हमें हर जुम्मे की रहमत दे, आमीन!